Wednesday 13 January 2010

छोटी सी ख़ुशी...


हर किसी को होती है, बड़ी खुशियों की चाहत...
जिसकी लिए करते है हम, जाने कितना इन्तजार।
एक बड़ा बंगला, गाड़ी, बैंक बेलेंस...सब कुछ हो बड़ा...
और अगर एक है तो एक से ज्यादा की तमन्ना करते है।

हम हर बड़ी ख़ुशी का इन्तजार करते करते...
नजरअंदाज करते है, राह में मिलने वाली छोटी खुशिया।
वो छोटी-छोटी खुशिया जो हर जगह बिखरी पड़ी है...
जिनको इन्तजार है की कोई उनको भी आकर बटोरे।

क्यों हम हमेशा बड़ा है तो बेहतर है का राग आलापते है....
क्यों नहीं ये जान पाते है की कई छोटा से ही तो बड़ा बनता है।
तो आज इन्तजार न करके, बाहे फेलाये उन के लिए जिनको है हमारा इन्तजार...
उन छोटी-छोटी, प्यारी-प्यारी, रंग-बिरंगी अनगिनत खुशियों के लिए।

क्यों न आज से ही हम छोटी खुशियों को समेटे, सहेजे...
खुश रहे....जो हमारे पास है उसमे....और उसके लिए इश्वर का धन्यवाद् करे।

Monday 11 January 2010

दिल चाहता है....


आज कुछ करने को दिल चाहता है ....
चाहता है, इन दरो-दीवारों को तोड़ कर...
मै उड़ चलु, दूर बहुत दूर आसमा की और...
हां वो आसमा जो हमे ऊपर उठना सिखाता है....

वो आसमा जो निर्मल, निश्छल और पावन है...
जहा न जातिवाद, नक्सलवाद, ना ही भाषावाद है...
हां वो आसमा जो हर प्राणी के लिए एक सा है....
जहा न कोई रिश्वतखोरी, न ही कोई हेराफेरी है....

इस कल्पना मात्र से ही मन मयूर नाच उठा....
कह रहा है, क्या कोई ऐसी जगह भी है जहा....
न आतंक है, न लूटपाट, न किसी चोरी का डर...
फिर कहो क्यों न दिल चाहेगा आसमा की और जाना....

पर अगले ही पल मन में विचार कोंदा...क्यों आखिर क्यों...
जाना हे मुझको आसमा की और....क्या मेरी धरा में कोई कमी है....
नहीं, कोई कमी नहीं....कमी तो हम लोगो में है, जो इस स्वर्ग को नरक बना रहे है...
नहीं मुझको कही नहीं जाना, यही रहना है और इस धरा को पुनः स्वर्ग बनाना है....

आपसे एक ही है सवाल, क्या आप देंगे मेरा साथ
इस धरा को आसमा सा उम्दा बनाने में....

Sunday 10 January 2010

रास्ता और मंजिल...

जब कोई निकलता है, किसी नये सफ़र पर....
आखों में हजारो सपने लिए, होता है चलने को तैयार।
तब यही सोचता है, कब होगा ये रास्ता पार....
कब मिलेगी मंजिल, कब खत्म होगा इन्तजार।

रास्ता जो अन्जाना, अनदेखा और अनंत तक जा रहा है...
जो हमको कभी डरता, घबराता तो कभी ख़ुशी देता है।
यही सिखाता है की, मन को विचलित मत करो चलते रहो ...
क्योकि चलना ही जिन्दगी है, यही अंतरिम सत्य है।

रास्ते जो कभी हमको निराश और हताश करेगा...
पर रास्ता होगा तो ही तो मंजिल मिलेगी।
फिर भी अन्जाना भय सताता हो तो अपने मन को कह
"All is well"

तो भुल जा रास्ते की परेशानी और बढ़ चल, बढ़ चल...
मंजिल पाने की ख़ुशी की अनुभूति ही रास्ते का सारा दर्द मिटा देगी।
अब देर न कर, चल उठ और चलता चल मंजिल की तरफ
चलता चल क्योकि चलना ही जिन्दगी है.............

Sunday 13 December 2009

तलाश

समय कितनी तेजी से गुजरता है ऐसा लगता हे मानो कल ही की बात हो जब आकांशा बहुत excited थी। पहली बार foreign trip पर जा रही थी, आखिर। रोहन, आकांशा के husband को company, Australia के melbourne शहर में भेज रही थी। आकांशा एक joint family से दूर अपनी nuclear family बसने जा रही थी। पसंद था उसको सबके साथ रहना, बाते करना, घुमना-फिरना। वैसे life में कुछ achieve करने की तमन्ना थी उसकी, पर रोहन और अपने in-laws में वो इस तरह रम गई की सब future पर छोड़ दिया उसने।

आकांशा भी खुश थी अपने husband के साथ Melbourne जाने को लेकर...कैसा होगा वहा का weather, environment, infrastructure, culture ...सब कुछ नया नया सा, बस यही सब सोचते हुए आज वो जा रही थी अपनों से दूर...बहुत दूर; मन के किसी कोने में अपनों से दूर जाने का गम तो था पर जाना तो था ही...इसी feeling के साथ वो उड़ चली...

Melbourne पहुच कर ऐसा लगा wow! Its really different...a very well planned, organised and structured. खेर, दो महीने तो जगह देखने और समझने में ही लग गए...अब क्या किया जाए, उसे कुछ तो करना था, पर क्या ? तब job के लिए apply किया लेकिन सब जगह Australian experiance की requirment ने उसे disappoint कर दिया। रोहन ने आकांशा के लिए सिटी में ही apartment ले लिया ये सोच कर की उसको अकेलापन ना लगे।

पर ना कोई friend, ना relative ना social circle सब जगह वो अपने आप को isolated समझती थी। उसका बहार जाने का मन नही करता, ना ही किसी से बात करने का...बस वो और उसकी तन्हाई, वो सिमटी जा रही थी अपने आप में। अब तो Melbourne भी bore लगने लगा था... लोटना चाहती थी वो अपने देश...तो कभी जब रोहन कहता " this is called developed nation...well managed in every manner, India doesnt have this kind of progress"....बात तो ठीक ही थी पर आकांशा को अब developed...developing से कोई मतलब नहीं था, India की social life, family patterns, cultural richness everything is unique. रोहन भी उसकी problem समझता था...वो उसको ज्यादा से ज्यादा time देता, उसकी मदद करता, और पूरा ध्यान रखता आकांशा का। पर आकांशा का तो रोहन के ऑफिस जाने के बाद का time निकलना बहुत मुश्किल हो गया था...उसको life नीरस और बेमानी लगने लगी थी...क्या इसी तरह पूरी life spend करनी होगी, life का focus कोटा जा रहा था, क्या करेगी, केसे करेगी कुछ पता नहीं था उसको...अब तो उसको बस India जाना था।

आकांशा का b'day था उस रोज, अपनी बड़ी माँ से बात करना उसको अच्छा लगता था, वे भी आज बेटी से बात करने के मूड में थी....आकांशा ने सारी बात उनके सामने रखी और अपनी mother-in-law की बात सुनी। माँ ने कहा" आकांशा ये तो युही चलता रहेगा बेटा....आज तुम Melbourne कल को US तो बाद में India के किसी शहर में, जरुरी नहीं हर जगह तुम को कोई साथ मिले...मै तो कहती हू, तुमको किसी की जरुरत नहीं होनी चाहिए....you have to be self satisfied...but dont get confussed with self-obsessed...and there is a hair line difference between them. अपने आप को पहचानो अपनी creativity को दुनिया के सामने लाओ... एक और बात हर काम में इन्सान को monetary benefit मिले ये तो जरुरी नहीं ना...कुछ काम mental satisfaction के लिए किये जाते हें। अपने knowledge को लोगो से share करो, अपने आप को मत खोओं...तुम्हे जिसकी तलाश हें वो तुम खुद हो। you can be your best friend..."

उस दिन माँ की बाते सुनी तो लगा सच में पूरा जहाँ पड़ा हें करने को ....वो दिन हें और आज का दिन हें आकांशा ने मुड़ कर नहीं देखा... उसने एक NGO के साथ काम शुरू किया और आज २० सालो के बाद अपनी कई NGO's संचालित कर रही हें.... आकांशा

Tuesday 8 December 2009

माँ

रोशनी कहा जा रही हो बेटा? पूछते हुए सुमन ने रोका। वो... माँ मै तो निधि की बर्थडे पार्टी में जा रही हू। पर बेटा....इतनी रात को ...किसके साथ, कब लोटोगी? Mom, please stop investigating like CBI....I am not a 2 year old kid now, you better grow up। पैर पटकते हुए कह कर रोशनी घर से बाहर चली गई। सुमन ने देखा की कोई लड़का आया था उसको लेने। जल्दी आ जाना...जाते हुए रोशनी को माँ की आवाज सुनाई दी।

अपनी 16 साल की बेटी का ये रूप देखकर, सुमन सोचने लगी कल ही की तो बात लगती है जब रोशनी मेरी ऊगली पकड़ कर चलना सीखी थी ...आज वो इतनी बड़ी हो गई की मुझे grow up होने को कहा रही है। वक़्त पंख लगा कर उड़ रहा था ....माँ, बेटी में दुरिया बढ रही थी...रोशनी इसको " Genration gap " का नाम देती थी.

देखते ही देखते रोशनी की शादी होने जा रही थी... अच्छा घर, वर...सुमन तो बहुत खुश थी उस दिन .....पर कही डरती भी थी की उसकी प्यारी बिटिया कैसे सुब में adjust करेगी। रोशनी को हिदायत देते हुए सुमन ने कहा बेटा अपने ससुराल में सब का आदर करना, प्यार देना ओर सब में adjust करलेना बेटा। रोशनी जो अभी भी अपने make-up को final touch दे रही थी बोल पड़ी ....Mom, please you dont take tension about me...I will manage everything, after all I am well educated and beatuiful girl, they have to accept me.... कहते हुए रोशनी अपने मके-उप को ठीक करने में लग गयी। सुमन कुछ और कहती इस से पहले वो बोल पड़ी अब में नही बोलूगी मेरा make-up ख़राब हो जायगा।

सुमन सोचती रही कैसे इसको बताऊ की education और beauty वो मायने नही रखती जो आपसी समझ और आतंरिक सोन्दर्य रखता है .... रोशनी को विदा हुए पुरा 1 साल हो गया था, पर अभी भी नही बदली थी वो...वही तेवर, अंदाज़ थे उसके। ससुराल में भी कोई कुछ कहता तो जवाब देती की वो सब जानती है। जब उसकी सास सुमन को फ़ोन पर बताती तो उसकी चिंता में डूब जाती सुमन ...अब तो तबियत भी ठीक कहा रहती थी उसकी।

एक दिन रोशनी का फ़ोन था की mom, you are going to be granny .... क्या मै नानी बनने वाली हू। सुमन ने रोशनी को खूब ध्यान रखने को कहा और पहली बार पाया की रोशनी ने पलट कर कुछ नही कहा ....शायद बड़ी हो रही है, यही सोचा सुमन ने।

उधर रोशनी जब से माँ बनी थी तब से अपने unborn का ख्याल रहता था उसको। सोचती थी कैसा होगा? क्या करेगा? कैसे करेगा? मै तो उसको ये नही करने दूंगी ....अगर girl child हुआ तो late night parties no ways, boyfriends not allowed.... सोचते हुए उसको अपनी सोच पर विश्वास नही हुआ, ये क्या हो गया मुझको मै तो एकदम माँ की तरह बोलने लगी... क्या हर माँ इसी तरह सोचती है, क्या उसको अपने बच्चे का इसी तरह ख्याल रहता है ...शायद हम भूल जाते है माँ क्या होती है, पर माँ कभी नही भूलती की बच्चे क्या होते है ...वो तो हमेशा हमको परेशानी से दूर रखती है ...... तो क्या मै आज तक अपनी माँ को नही समझ पाई थी....बस आज मै माँ से माफ़ी माग लुंगी और मुझको पता है वो मुझको माफ़ कर देंगी।

अपनी कार निकल कर वो माँ से मिलने जा रही थी की मोबाइल की घंटी खनखना उठी...फ़ोन पर उसकी भुआ की आवाज थी " बेटा, तुम्हारी माँ हमसब को छोड़ कर चली गई " ....रोशनी की रुलाई फुट पड़ी बोली माँ कमसेकम मुझको बेटी बनने कर म़ोका तो देती......