Sunday 13 December 2009

तलाश

समय कितनी तेजी से गुजरता है ऐसा लगता हे मानो कल ही की बात हो जब आकांशा बहुत excited थी। पहली बार foreign trip पर जा रही थी, आखिर। रोहन, आकांशा के husband को company, Australia के melbourne शहर में भेज रही थी। आकांशा एक joint family से दूर अपनी nuclear family बसने जा रही थी। पसंद था उसको सबके साथ रहना, बाते करना, घुमना-फिरना। वैसे life में कुछ achieve करने की तमन्ना थी उसकी, पर रोहन और अपने in-laws में वो इस तरह रम गई की सब future पर छोड़ दिया उसने।

आकांशा भी खुश थी अपने husband के साथ Melbourne जाने को लेकर...कैसा होगा वहा का weather, environment, infrastructure, culture ...सब कुछ नया नया सा, बस यही सब सोचते हुए आज वो जा रही थी अपनों से दूर...बहुत दूर; मन के किसी कोने में अपनों से दूर जाने का गम तो था पर जाना तो था ही...इसी feeling के साथ वो उड़ चली...

Melbourne पहुच कर ऐसा लगा wow! Its really different...a very well planned, organised and structured. खेर, दो महीने तो जगह देखने और समझने में ही लग गए...अब क्या किया जाए, उसे कुछ तो करना था, पर क्या ? तब job के लिए apply किया लेकिन सब जगह Australian experiance की requirment ने उसे disappoint कर दिया। रोहन ने आकांशा के लिए सिटी में ही apartment ले लिया ये सोच कर की उसको अकेलापन ना लगे।

पर ना कोई friend, ना relative ना social circle सब जगह वो अपने आप को isolated समझती थी। उसका बहार जाने का मन नही करता, ना ही किसी से बात करने का...बस वो और उसकी तन्हाई, वो सिमटी जा रही थी अपने आप में। अब तो Melbourne भी bore लगने लगा था... लोटना चाहती थी वो अपने देश...तो कभी जब रोहन कहता " this is called developed nation...well managed in every manner, India doesnt have this kind of progress"....बात तो ठीक ही थी पर आकांशा को अब developed...developing से कोई मतलब नहीं था, India की social life, family patterns, cultural richness everything is unique. रोहन भी उसकी problem समझता था...वो उसको ज्यादा से ज्यादा time देता, उसकी मदद करता, और पूरा ध्यान रखता आकांशा का। पर आकांशा का तो रोहन के ऑफिस जाने के बाद का time निकलना बहुत मुश्किल हो गया था...उसको life नीरस और बेमानी लगने लगी थी...क्या इसी तरह पूरी life spend करनी होगी, life का focus कोटा जा रहा था, क्या करेगी, केसे करेगी कुछ पता नहीं था उसको...अब तो उसको बस India जाना था।

आकांशा का b'day था उस रोज, अपनी बड़ी माँ से बात करना उसको अच्छा लगता था, वे भी आज बेटी से बात करने के मूड में थी....आकांशा ने सारी बात उनके सामने रखी और अपनी mother-in-law की बात सुनी। माँ ने कहा" आकांशा ये तो युही चलता रहेगा बेटा....आज तुम Melbourne कल को US तो बाद में India के किसी शहर में, जरुरी नहीं हर जगह तुम को कोई साथ मिले...मै तो कहती हू, तुमको किसी की जरुरत नहीं होनी चाहिए....you have to be self satisfied...but dont get confussed with self-obsessed...and there is a hair line difference between them. अपने आप को पहचानो अपनी creativity को दुनिया के सामने लाओ... एक और बात हर काम में इन्सान को monetary benefit मिले ये तो जरुरी नहीं ना...कुछ काम mental satisfaction के लिए किये जाते हें। अपने knowledge को लोगो से share करो, अपने आप को मत खोओं...तुम्हे जिसकी तलाश हें वो तुम खुद हो। you can be your best friend..."

उस दिन माँ की बाते सुनी तो लगा सच में पूरा जहाँ पड़ा हें करने को ....वो दिन हें और आज का दिन हें आकांशा ने मुड़ कर नहीं देखा... उसने एक NGO के साथ काम शुरू किया और आज २० सालो के बाद अपनी कई NGO's संचालित कर रही हें.... आकांशा

1 comment:

  1. Well done Akansha. Highway ka rasta Pagdandiyo se jata hai. pagdandiyo se gujerte samay pura hoslla, khud per vishvas aur kuch naya kerne ki tamnna hi lastly highway pahunchati hai.

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